भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बड़ी भारी दुकान देखी / नरेश चंद्रकर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:20, 4 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश चंद्रकर |संग्रह=बातचीत की उड़ती धूल में / न...)
औसतन साठ किलोमीटर की गति से
धुँआधार दौ़अते वाहनों के बीच
ख़ुद को लगभग चूहे की तरह महसूसते हुए
सड़क पार करते मैंने समझा
क्यों ठिठक गया था पीछे
क्या था मेरे उस ज़रा-सा ठिठक कर आगे बढ़ जाने में
जब मैंने छोटी दुपहिया साइकिलों की
बड़ी भारी दुकान देखी!!