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आदत, खराब है / मुकुट बिहारी सरोज

Kavita Kosh से
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मेरी, कुछ आदत, खराब है


कोई दूरी, मुझसे नहीं सही जाती है,

मुँह देखे की मुझसे नहीं कही जाती है

मैं कैसे उनसे, प्रणाम के रिश्ते जोडूँ-

जिनकी नाव पराये घाट बही जाती है।


मैं तो खूब खुलासा रहने का आदी हूँ

उनकी बात अलग, जिनके मुँह पर नकाब है।


है मुझको मालूम, हवाएँ ठीक नहीं हैं

क्योंकि दर्द के लिये दवायें ठीक नहीं हैं

लगातार आचरण, गलत होते जाते हैं-

शायद युग की नयी ऋचायें ठीक नहीं हैं।


जिसका आमुख ही क्षेपक की पैदाइश हो

वह किताब भी क्या कोई अच्छी किताब है।


वैसे, जो सबके उसूल, मेरे उसूल हैं

लेकिन ऐसे नहीं कि जो बिल्कुल फिजूल हैं

तय है ऐसी हालत में, कुछ घाटे होंगे-

लेकिन ऐसे सब घाटे मुझको कबूल हैं।


मैं ऐसे लोगों का साथ न दे पाऊँगा

जिनके खाते अलग, अलग जिनका हिसाब है।