भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब कभी भी दो दिलों में / विजय वाते

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:01, 10 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय वाते |संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते }} <poem> जब कभी...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब कभी भी दो दिलों में प्यार का पौधा उगा।
हो के ख़ुश अल्लाह ने नदियों में पानी भर दिया।

अब तलक जो देखता था एक ही राशि का फल,
इन दिनों अखबार में दो राशियाँ पढ़ने लगा।

उसको दफ़्तर की घड़ी लगती थी साज़िश में शरीक,
पाँच बजते ही नहीं थे, काँटा जैसे थम गया।

चंद ग्रीटिंग, कुछ SMS, इक अदद मुरझाया फूल,
चाह कर आखिर उसे, बतलाओ मुझको क्या मिला।

उसने हाथों को बढ़ाया और तारे चुन लिए,
पास आकर आसमां, कुछ और उजाला हो गया।