आपने उसकी तबाही का कोई अवसर नहीं छोड़ा
जुल्म की हद ने ही उसमें जुल्म का कुछ डर नहीं छोड़ा।
कुछ अजब अन्दाज़ में आँधी चली हर बार मज़हब की
उसने कोशिश भर, कहीं पर खुशनुमा मंज़र नहीं छोड़ा।
घर जलाकर जिसने बेघर कर दिया था बुगुनाहों को
कोई साया, वक्त़ ने उस शख्स़ के सर पर नहीं छोड़ा।
पूजने भर से किसी को कब मिला है आज तक ईश्वर
पूजने वालों ने तो कोई कहीं पत्थर नहीं छोड़ा।
नोचने वालों के कदमों से लिपट कर रह गया आखिर
आदमी का फूल ने हर हाल में आदर नहीं छोड़ा।