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पिंजरें में कैद पंछी / कमलेश भट्ट 'कमल'

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पिंजरें में कैद पंछी कितनी उड़ान लाते

अपने परों में कैसे वो आसमान लाते।


कागज पे लिखने भर से खुशहालियाँ जो आतीं

अपनी गजल में हम भी हँसता सिवान लाते।


हथियार की जरूरत बिल्कुल नहीं थी भाई

मज़हब की बात करते, गीता कुरान लाते।


तन्हा ज़बान की तो लत झूठ की लगी थी

फिर रहनुमा कहाँ से सच की ज़बान लाते।


पहले ही सुन चुके हैं आँसू के खूब किस्से

अब तो कहीं से खुशियों की दास्तान लाते।