बनाए घर गरीबों के, अमीरों के
बहुत कम घर बने हैं राजगीरों के।
उन्हें अपने-पराये से भी क्या मतलब
सभी घर, घर हुआ करते फ़कीरों के।
कोई अच्छी लिखी किस्मत बुरी कोई
अजब अन्दाज़ होते हैं लकीरों के।
नहीं पहचान जिस्मों के बिना सम्भव
बहुत एहसान रूहों पर शरीरों के।
कहीं पर भी बुराई हो, न बख्श़ेंगे
कभी मज़हब नहीं होते कबीरों के।