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स्नेहिल मिलन की सीख दे दो / हिमांशु पाण्डेय
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फ़ैली हुई विश्वंजली में , प्रेम की बस भीख दे दो
विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की सीख दे दो ।
चिर बंधनों को छोड़ कर क्यों जा रही है अंशु अब
अपनी विकट विरहाग्नि क्यों कहने लगा है हिमांशु अब
सुन दारुण दारुण व्यथा सब नव वर्ष अपनी चीख दे दो ।
विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की सीख दे दो ।
ज्यों डूब जाता है सुधाकर , विश्व को आलोक दे
फ़िर उदित होता नवल वह सब दुखों को शोक दे
बढ़ते रहें आगे सदा, नव वर्ष अपनी लीक दे दो ।
विरह बोझिल अंत को स्नेहिल मिलन की सीख दे दो।