भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आखिरकार लौट आये तुम / आलोक श्रीवास्तव-२

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:52, 22 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-२ }} <poem> तुम्हारा लौटना किसी सिद...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम्हारा लौटना किसी सिद्धार्थ का
निरापद वनों से
जनपदों की ओर आना नहीं है
तुम्हारे पास दुखों का कोई निवारण भी नहीं
खाली हाथ लौटे हो तुम
वैसी-की-वैसी आत्मा
वैसी-की-वैसी देह

सवाल अब भी क़ाबिज़ है
दुख अब भी मूर्त

फिर भी बधाइ लो
न हो तुम्हारा लौटना बुद्ध की तरह
न हो जगतव्यापी दुखों का हल
पर लौटे हो तुम
उन्नतमाथ
प्रश्नचिन्हों से घिरे
और मैं जानता हूं
सुख के बारे में किये तुम्हारे प्रश्न
बहुत वाजिब हैं

निवारण के साथ लौटा व्यक्ति
मिथक होता जाता है तो
सवालों के साथ लौटा मनुष्य
इतिहास !