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गद्य / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
सुंदर सुगठित गद्य, सहृदय के हाथों लिखा
पढ़ते पढ़ते चित्त, यात्राएं करने लगा
स्मृतियों का इहलोक, किसी और ने था रचा
भूले बिसरे मित्र, किंतु मुझे मिलने लगे
उनका अपना कथ्य, वही गद्य कहने लगा ।
(मई 1985 में रचित,'कुछ पते कुछ चिट्ठियां' कविता-संग्रह से)