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शारदीया / राम विलास शर्मा
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सोना ही सोना छाया आकाश में,
पश्चिम में सोने का सूरज डूबता,
पका रंग कंचन जैसे ताया हुआ,
भरे ज्वार के भुट्टे पक कर झुक गये ।
"गला-गला" कर हाँक रही गुफना लिये,
दाने चुगती हुईं गलरियों को खड़ी,
सोने से भी निखरा जिस का रंग है,
भरी जवानी जिस की पक कर झुक गयी ।