भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक घनाक्षरी / पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

Kavita Kosh से
पूर्णिमा वर्मन (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 16:36, 3 सितम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि: डॉ.पदुमलाल पन्नालाल बख्शी

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

सेर भर सोने को हजार मन कण्डे में

खाक कर छोटू वैद्य रस जो बनाते हैं ।

लाल उसे खाते तो यम को लजाते

और बूढ़े उसे खाते देव बन जाते हैं ।

रस है या स्वर्ग का विमान है या पुष्प रथ

खाने में देर नहीं, स्वर्ग ही सिधाते हैं ।

सुलभ हुआ है खैरागढ़ में स्वर्गवास

और लूट घन छोटू वैद्य सुयश कमाते हैं ।

(प्रेमा, अप्रैल 1931 में प्रकाशित)