भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शारदीया / राम विलास शर्मा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 4 सितम्बर 2006 का अवतरण
कवि: राम विलास शर्मा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
सोना ही सोना छाया आकाश में,
पश्चिम में सोने का सूरज डूबता,
पका रंग कंचन जैसे ताया हुआ,
भरे ज्वार के भुट्टे पक कर झुक गये ।
"गला-गला" कर हाँक रही गुफना लिये,
दाने चुगती हुईं गलरियों को खड़ी,
सोने से भी निखरा जिस का रंग है,
भरी जवानी जिस की पक कर झुक गयी ।