भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चेहरा मेरा था निगाहें उस की / परवीन शाकिर

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 25 मई 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चेहरा मेरा था निगाहें उस की
ख़ामुशी में भी वो बातें उस की

मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गईं
शेर कहती हुई आँखें उस की

शोख़ लम्हों का पता देने लगीं
तेज़ होती हुई साँसें उस की

ऐसे मौसम भी गुज़ारे हम ने
सुबहें जब अपनी थीं शामें उस की

ध्यान में उस के ये आलम था कभी
आँख महताब की यादें उस की

फ़ैसला मौज-ए-हवा ने लिक्खा
आँधियाँ मेरी बहारें उस की

नीन्द इस सोच से टूटी अक्सर
किस तरह कटती हैं रातें उस की

दूर रह कर भी सदा रहती है
मुझ को थामे हुए बाहें उस की