भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कल ही मैं सोच रहा था / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:55, 26 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर |संग्रह=संसार बदल जाएगा / विष्णु नाग...)
आज मैंने पाया
मैं क्या हूँ
कल ही मैं सोच रहा था
मैं क्या हूँ
कितनी जल्दी हर कर लिया सवाल
छुट्टी तेरी रामगोपाल।