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स्वांतः सुखाय / केशव शरण
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स्वांत: सुखाय बस चल रही है मेरी कविता
नदी में नाव-सी
वृक्षों में हवा-सी
धमनी में रक्त-सी
और बहुत कुछ वक़्त-सी
आप के रूप में
आज जो मिला है
एक अच्चाअ भावक
इस स्वांतः सुखाय के लिए
हर्षप्रद यही है
और प्रेरणादायक