भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विदाई / केशव शरण

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:50, 30 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव शरण |संग्रह=जिधर खुला व्योम होता है / केशव श...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये कैसे शब्द हैं
जो स्मृतियों को जगाते हुए
विस्मृति में लीन होते जा रहे हैं,
ये कैसे पुष्पहार हैं
जो हृदय को घेरते हुए
सम्बन्धों की डोर खोते जा रहे हैं,
ये कैसे उपहार हैं
जिन्हें पाकर दामन से ज़्यादा
दृग गए हैं भर
ये कैसी मुक्ति है
जो क़ैद से ज़्यादा लग रही है कष्टकर !