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ठाकुर
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ठाकुर
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जन्म | |
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कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
ठाकुर / परिचय |
- जौँ लौँ कोऊ पारखी सोँ होन नहिँ पाई भेँट / ठाकुर
- बैर प्रीति करिबे की मँन मेँ न राखै सँक / ठाकुर
- हिलि मिलि लीजिये प्रवीनन ते आठो याम / ठाकुर
- सेवक सिपाही सदा उन रजपूतन के / ठाकुर
- चारहू ओर उदै मुखचँद की चाँदनी चारु निहार ले री / ठाकुर
- यह प्रेम कथा कहिये किहि सोँ जो कहै तो कहा कोऊ मानत है / ठाकुर
- अब का समुझावती को समुझै बदनामी के बीज तो बो चुकी री / ठाकुर
- वा निरमोहिनि रूप की रासि न ऊपर के मन आनति ह्वै है / ठाकुर
- रूप अनूप दई बिधि तोहि तो मान किये न सयानि कहावै / ठाकुर
- धनि हैँगे वे तात औ मात जयो जिन देह धरी सो घरी धनि हैं / ठाकुर
- / ठाकुर
- / ठाकुर