भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक नीला आईना बेठोस / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:38, 4 सितम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि: शमशेर बहादुर सिंह

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

एक नीला आईना

बेठोस-सी यह चाँदनी

और अंदर चल रहा हूँ मैं

उसी के महातल के मौन में ।

मौन में इतिहास का

कन किरन जीवित, एक, बस ।

एक पल की ओट में है कुल जहान ।

आत्मा है

अखिल की हठ-सी ।

चाँदनी में घुल गए हैं

बहुत-से तारे, बहुत कुछ

घुल गया हूँ मैं

बहुत कुछ अब ।

रह गया-सा एक सीधा बिंब

चल रहा है जो

शांत इंगित-सा

न जाने किधर ।