भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खरी दुपहरी भरी हरी हरी कुंज मँजु / देव
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:44, 3 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देव }} <poem> खरी दुपहरी भरी हरी हरी कुंज मँजु देव अ...)
खरी दुपहरी भरी हरी हरी कुंज मँजु
देव अलि पुंजन के गुंज हियो हरिजात ।
सीरे नदनीरन गँभीरन समीर छांह
सोवै परे पथिक पुकारैं पिक करि जात ।
ऎसे मे किसोरी भोरी गोरी कुम्हिलाने मुख
पंकज मे पांय धरा धीरज मे धरि जात ।
सोहैं घनस्याम मग हेरति हथेरी ओट
ऊचे धाम बाम चढ़ि आवत उतरि जात ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।