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आवन सुन्यो है मनभावन को भावती ने / देव
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आवन सुन्यो है मनभावन को भावती ने
आँखिन अनँद आँसू ढरकि ढरकि उठैं ।
देव दृग दोऊ दौरि जात द्वार देहरी लौँ
केहरी सी साँसे खरी खरकि-खरकि उठैँ ।
टहलैँ करति टहलैँ न हाथ पाँय रँग
महलै निहारि तनी तरकि तरकि उठैं ।
सरकि सरकि सारी दरकि दरकि आँगी
औचक उचौहैँ कुच फरकि फरकि उठैँ ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।