भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अर्थ है मूल भली तुक डार / दीन

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:12, 6 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीन }} <poem> अर्थ है मूल भली तुक डार सुखच्छर पत्र को...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अर्थ है मूल भली तुक डार सुखच्छर पत्र को पेखिकै जीजै ।
छन्द है फूल नवोरस हैँ फल दान के वारि सोँ सीँचिबो कीजै ।
दीन कहै योँ प्रवीनन सोँ कवि की कविता रसराखि के पीजै ।
कीरति के बिरवा कवि हैँ इनको कबहूँ कुम्हिलान न दीजै ।


दीन का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।