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चुका भी हूँ मैं नहीं / शमशेर बहादुर सिंह

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चुका भी हूँ मैं नहीं

कहाँ किया मैनें प्रेम

अभी ।

जब करूँगा प्रेम

पिघल उठेंगे

युगों के भूधर

उफन उठेंगे

सात सागर ।

किंतु मैं हूँ मौन आज

कहाँ सजे मैनें साज

अभी ।

सरल से भी गूढ़, गूढ़तर

तत्व निकलेंगे

अमित विषमय

जब मथेगा प्रेम सागर

हृदय ।

निकटतम सबकी

अपर शौर्यों की

तुम

तब बनोगी एक

गहन मायामय

प्राप्त सुख

तुम बनोगी तब

प्राप्य जय !


( १९४१ में लिखित )