जुगनू जमाती कैधौं बाती बार खाती ,
प्राण ढूंढ़त फिरत घाती मदन अराती है ।
झिल्ली झननाती भननाती है बिरह ,
भेरी कोकिला कुजाती मदमाती अनखाती है ।
घटा घननाती सननाती पौन शिवनाथ ,
फनी फननाती ये लगत ताती छाती है ।
सावन की राती दुखदाती ना सोहाती ,
मोर बोलैँ उतपाती इत पाती हू न आती है ।
शिव नाथ का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।