भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याहि मत जानौ है सहज कहै रघुनाथ / रघुनाथ
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:46, 15 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रघुनाथ }} <poem> याहि मत जानौ है सहज कहै रघुनाथ, अति ह...)
याहि मत जानौ है सहज कहै रघुनाथ,
अति ही कठिन रीति निपट कुढँग की ।
याहि करि काहू काहू भाँति सो न कल पायो ,
कलपायो तन मन मति बहु रँग की ।
औरहू कहौँ सो नेकु कान दै के सुन लीजै ,
प्रगट कही है बात बेदन के अँग की ।
तब कहूँ प्रीति कीजै पहिले ही सीख लीजै ,
बिछुरन मीन की औ मिलन पतँग की ।
रघुनाथ का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।