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सप्ताह की कविता
शीर्षक: आयो घोष बड़ो व्यापारी
रचनाकार: देवेन्द्र आर्य
आयो घोष बड़ो व्यापारी पोछ ले गयो नींद हमारी कभी जमूरा कभी मदारी इसको कहते हैं व्यापारी रंग गई मन की अंगिया-चूनर देह ने जब मारी पिचकारी अपना उल्लू सीधा हो बस कैसा रिश्ता कैसी यारी आप नशे पर न्यौछावर हो मैं अब जाऊँ किस पर वारी बिकते बिकते बिकते बिकते रुह हो गई है सरकारी अब जब टूट गई ज़ंजीरें क्या तुम जीते क्या मैं हारी भूख हिकारत और गरीबी किसको कहते हैं खुद्दारी? दुनिया की सुंदरतम् कविता सोंधी रोटी, दाल बघारी