भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जल-समाधि / कविता वाचक्नवी

Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 27 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''जल समाधि''' सीता की व्यथा-क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जल समाधि


सीता की व्यथा-कथाएँ सुन
वाल्मीकि, रच देते हैं रामकथा
‘रामायण’
पर सखी!
न मैंने कथा कही
न तुमने जानकीकथा रची
फिर भी
भयभीत, कातर, भीरु
अपराधियों का डर
छद्मबल बन, उमड़ता रहा
और
चक्रवर्ती होने के लिए
दौड़ा दिए अश्व।
लव-कुश
जन्मे नहीं अभी
गर्भ में है
और भूमि भी फटकर
देती नहीं आश्रय, समोती नहीं;
आओ
पानी में ही समा जाएँ हम।