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जल-समाधि / कविता वाचक्नवी
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जल समाधि
सीता की व्यथा-कथाएँ सुन
वाल्मीकि, रच देते हैं रामकथा
‘रामायण’
पर सखी!
न मैंने कथा कही
न तुमने जानकीकथा रची
फिर भी
भयभीत, कातर, भीरु
अपराधियों का डर
छद्मबल बन, उमड़ता रहा
और
चक्रवर्ती होने के लिए
दौड़ा दिए अश्व।
लव-कुश
जन्मे नहीं अभी
गर्भ में है
और भूमि भी फटकर
देती नहीं आश्रय, समोती नहीं;
आओ
पानी में ही समा जाएँ हम।