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कुछ पल / किरण मल्होत्रा
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कुछ पल
साथ चले भी
कोई
तो क्या होता है
क़दम-दर-क़दम
रास्ता तो
अपने क़दमों से
तय होता है
कुछ क़दम संग
चलने से फिर
न कोई अपना
न पराया होता
बस, केवल
वे पल जींवत
और
सफ़र सुहाना होता है