भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बहुत दूर तक देखा / किरण मल्होत्रा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:25, 4 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=किरण मल्होत्रा }} <poem> बहुत दूर तक देखा सागर का कि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत दूर तक देखा
सागर का किनारा
नज़र नहीं आया
सैकड़ों सफ़ेद लहरें थीं

नज़र नहीं आया
किस की तरह खिंची
चली जा रही थी
लहरें क्यूँ बढ़ी
चली आ रही थीं
कुछ भी पकड़ में
नहीं आया

सब जीवन-सा
रहस्यमय लगा

कठपुतली की तरह
जिसमें सब नाच रहे
लेकिन
डोर खींचने वाला
नज़र नहीं आया