भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़मीं करवट बदलती है बलाये-नागहाँ होकर / यगाना चंगेज़ी

Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:41, 12 जुलाई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: ज़मीं करवट बदलती है बलाये-नागहाँ होकर। अजब क्या सर पै आये पाँव क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ज़मीं करवट बदलती है बलाये-नागहाँ होकर।

अजब क्या सर पै आये पाँव की ख़ाक आसमाँ होकर॥


उठो ऐ सोनेवालो! सर पै धूप आई क़यामत की।

कहीं यह दिन न ढल जाये नसीबे-दुश्मनाँ होकर॥


अरे ओ जलनेवाले! काश जलना ही तुझे आता।

यह जलना कोई जलना है कि रह जाये धुआँ होकर॥