भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दो कतआ़त / यगाना चंगेज़ी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:43, 13 जुलाई 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सब तेरे सिवा काफ़िर, आख़िर इसका मतलब क्या!

सिर फिरा दे इन्साँ का ऐसा ख़ब्ते-मज़हब क्या!!


मजाल थी कोई देखे तुम्हें नज़र भरकर।

यह क्या है आज पडे़ हो मले-दले क्योंकर॥