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काला चन्द्रमा / के० सच्चिदानंदन
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चाँद को देखकर, जो सिहरा पहले फिर
सिकुड़ा, बना एक छोटा वृत्त
एक छाया पर लेटकर, जो
अंधेरी हो रही है और धीमे-धीमे मर रही है
याद करते वह पीली उजास जो दूर गई और अदृश्य हुई
इस रात मेरा जीवन जलता है धुंधला-सा।
अनुवाद : राजेन्द्र धोड़पकर