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न आता इधर तो / केशव शरण
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न आता इधर तो
कैसे एख पाता
दूर-दूर तक फैली हरी-भरी धरती
और गायें दूब चरतीं
न आता इधर तो
कैसे जुड़ाते ये नयन
कैसे नहाता
दूध से मन !