भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जितने सितम किए थे किसी ने अताब में / सीमाब अकबराबादी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:57, 1 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमाब अकबराबादी }} <poem> जितने सितम किये थे किसी ने...)
जितने सितम किये थे किसी ने अताब में।
वो भी मिला लिए करमे-बेहिसाब में॥
हर चीज़ पर बहार, हर इक शय पै हुस्न था।
दुनिया जवान थी मेरे अहदे-शबाब में॥