भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क़फ़स में खींच ले जाये मुक़द्दर या नशेमन में / सीमाब अकबराबादी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:25, 1 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमाब अकबराबादी }} <poem> क़फ़स में खींच ले जाये मुक...)
क़फ़स में खींच ले जाये मुक़द्दर या नशेमन में।
हमें परवाज़ से मतलब है, चलती हो हवा कोई॥
वफ़ा करके मैं यूँ बैठा हूँ फ़ैलाये हुए दामन।
कि जैसे बाँटता फ़िरता है इनआ़मे-वफ़ा कोई॥