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हरिवंश पुराण / स्वयंभू
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भीम-कीचक की कुश्ती
तो भिडिय परोप्परु रण कुसल। विण्णि वि णव णाय सहास बल॥
विण्णि वि गिरि तुंग सिंह सिहर। विण्णि वि जल हर रव गहिर गिर॥
विण्णि वि दट्ठोट्ठ रुट्ढ वयण। विण्णि वि गुंजा हल समणयण॥
विण्णि वि णह यल णिह वच्छथल। विण्णि वि परिहोवम भुज युगल॥