भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पथ देख बिता दी रैन / महादेवी वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लेखिका: महादेवी वर्मा

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

पथ देख बिता दी रैन

मैं प्रिय पहचानी नहीं !


तम ने धोया नभ-पंथ

सुवासित हिमजल से;

सूने आँगन में दीप

जला दिये झिल-मिल से;

आ प्रात बुझा गया कौन

अपरिचित, जानी नहीं !

मैं प्रिय पहचानी नहीं !


धर कनक-थाल में मेघ

सुनहला पाटल सा,

कर बालारूण का कलश

विहग-रव मंगल सा,

आया प्रिय-पथ से प्रात-

सुनायी कहानी नहीं !

मैं प्रिय पहचानी नहीं !


नव इन्द्रधनुष सा चीर

महावर अंजन ले,

अलि-गुंजित मीलित पंकज-

-नूपुर रूनझुन ले,

फिर आयी मनाने साँझ

मैं बेसुध मानी नहीं !

मैं प्रिय पहचानी नहीं !


इन श्वासों का इतिहास

आँकते युग बीते;

रोमों में भर भर पुलक

लौटते पल रीते;

यह ढुलक रही है याद

नयन से पानी नहीं !

मैं प्रिय पहचानी नहीं !


अलि कुहरा सा नभ विश्व

मिटे बुद्‌बुद्‌‌‍-जल सा;

यह दुख का राज्य अनन्त

रहेगा निश्चल सा;

हूँ प्रिय की अमर सुहागिनि

पथ की निशानी नहीं !

मैं प्रिय पहचानी नहीं !