भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भ्रमे भूले मलिंदनि देखि नितै / द्विज
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:58, 7 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} Category:पद <poem>भ्रमे भूले मलिंदनि देखि नितै, ...)
भ्रमे भूले मलिंदनि देखि नितै, तन भूलि रहैं किन भामिनियां।
द्विजदेव जू डोली-लतान चितै, हिये धीर धरैं किमि कामिनियां॥
हरि हाई ! बिदेस में जाइ बसे, तजि ऐसे समैं गज गामिनियां।
मन बौरे न क्यों सजनी ! अब तौ, बन बौरीं बिसासिनी आमिनियां॥