भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दो बूँदें / जयशंकर प्रसाद

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:39, 27 जनवरी 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शरद का सुंदर नीलाकाश

निशा निखरी, था निर्मल हास

बह रही छाया पथ में स्वच्छ

सुधा सरिता लेती उच्छ्वास

पुलक कर लगी देखने धरा

प्रकृति भी सकी न आँखें मूंद

सु शीतलकारी शशि आया

सुधा की मनो बड़ी सी बूँद !