भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुम्हारे जल में / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:42, 15 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=कवि का कोई घर नहीं होता ...)
एक वह था
अपनी ही छवि पर
हो गया जो मुग्ध
और एक वह
मुग्ध हुआ जो चांद की छवि पर।
दरअसल, मुग्ध थे दोनों ही
जल पर
जल ख़ुद दर्पण है अपना
-छवि कोई हो उसमें-
अपने में खींचता है
डुबो लेता है
अब इसमें दोष किसका है
अगर डूबता ही जाता हूँ
तुम्हारे जल में।