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दुइ टूक बात / पढ़ीस
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:13, 19 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पढ़ीस }} <poem> चहयि होटल मा जलपानु करउ की- :::अचारु व...)
चहयि होटल मा जलपानु करउ की-
अचारु विचारु की पोथी पढ़उ।
व्यभिचारी रहउ सदाचारी बनउ चहयि-
साँच्यन ग्वाड़न मूड़ धरउ।
चहे राजा भलयि, रय्यति हे चहयि-
जायि जहाजन म्याड़ चढ़उ।
मुलउ द्यास जवार की बातन मा-
घर ते तुम दादा न पाछे कढ़उ।
तुम हॉथन ग्वाड़न ते मजबूत यी-
चारि पनेथी कि बासी करउ।
को सगा हयि सही सउत्यालि हयि-
को तनि भाई भले पहिचानउ तउ।
कीहि की अमरउती रही जग मा चहयि-
आजु जरउ चहयि काल्हि मरउ।
कटि जाउ न द्यास की बातन मा तउ-
अकारथ का युहु जामा धरउ।
शब्दार्थ :
द्यास = देश।
जवार = आस-पास का इलाका।