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इतना तो होगा ही / शीन काफ़ निज़ाम
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बहार आएगी
तो क्या कुछ नहीं होगा नया
इतना तो होगा ही कि
फूलों की नई फ़स्ल में
मैं-कहीं छिपा हूंगा
तुम्हीं को देखता
कसमसाती कोंपलों की उठानों में
तुम-
कहीं होगी
छिपती छिपाती
क्या ये कुछ नहीं होगा
नया!?