भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आमद / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:50, 22 अगस्त 2009 का अवतरण
घर
सहर<ref>प्रातःकाल</ref> के समर<ref>फल</ref>
दर<ref>दरवाज़ा</ref> दरख़्शिन्दा<ref>दीप्त</ref> हुए
सनसनाते नगर में सोए
सवेरे जाग उट्ठे
आँख-अंधों ने
ज़बाँ-गूंगों ने
बहरों ने समाअत<ref>श्रवण-शक्ति</ref>
और सबा<ref>प्रातःकाल की हवा</ref> ने सब्र पाया
आ चुके या आ रहे हो
तुम!
शब्दार्थ
<references/>