भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शब्दों ने जो बात कही है / नचिकेता

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:03, 24 अगस्त 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


शब्दों ने

जो बात कही है

सच है

झूठ-प्रपंच नहीं है


चटख धूप से

निविड़ छाँह तक

ध्वज-सी फहरी हुई

चाह तक

पसरी खामोशी

भुतही है


खुरच

समय को

नाखूनों से

पूछे कौन

प्रश्न ब्रूनो से

तुमने कितनी व्यथा

सही है


हमें चाहिए

हलचल ऐसी

धधके जो

दावानल जैसी

आँखें

उसे तलाश

रही हैं