भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अज़्मत-ए-ज़िन्दगी को बेच दिया / सागर सिद्दीकी

Kavita Kosh से
सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:59, 27 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सागर सिद्दीकी |संग्रह= }} {{KKGhazal}} <poem> अज़्मत-ए-ज़िन्द...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँचा:KKGhazal

अज़्मत-ए-ज़िन्दगी को बेच दिया
हम ने अपनी ख़ुशी को बेच दिया

चश्म-ए-साक़ी के इक इशारे पे
उम्र की तिश्नगि को बेच दिया

रिन्द जाम-ओ-सुबू पे हँसते हैं
शैख़ ने बन्दगी को बेच दिया

रहगुज़ारों पे लुट गई राधा
शाम ने बाँसुरी को बेच दिया

जगमगाते हैं वहशतों के दयार
अक़्ल ने आदमी को बेच दिया

लब-ओ-रुख़्सार के इवज़ हम ने
सित्वत-ए-ख़ुस्रवी को बेच दिया

इश्क़ बेहरूपिया है ऐ 'सागर'
आपने सादगी को बेच दिया