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चाँदनी को रुसूल कहता हूँ / साग़र सिद्दीकी
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चाँदनी को रुसूल कहता हूँ
बात को बाउसूल कहता हूँ
जगमगाते हुए सितारों को
तेरे पैरों की धूल कहता हूँ
जो चमन की हयात को डस ले
उस कली को बबूल कहता हूँ
इत्तेफ़ाक़न तुम्हारे मिलने को
ज़िन्दगी का हुसूल कहता हूँ
आप की साँवली सी सूरत को
ज़ौक़-ए-यज़्दाँ की भूल कहता हूँ
जब मयस्सर हो साग़र-ओ-मीना
बर्क़पारों को फूल कहता हूँ