भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शाम से आँख में नमी सी है / गुलज़ार
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 18 अक्टूबर 2006 का अवतरण
रचनाकार: गुलज़ार
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफ़्न कर दो हमें कि साँस मिले
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है
वक़्त रहता नहीं कहीं छुपकर
इस की आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाज़मी सी है