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ज़ीस्त की जुस्तजू है ग़ज़ल / साग़र पालमपुरी

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ज़ीस्त<ref>जीवन</ref>की जुस्तजू<ref>कामना</ref> है ग़ज़ल
पुरअसर गुफ़्तगू<ref>वार्तालाप</ref> है ग़ज़ल

क्यों हो मोहताज<ref>निर्भर</ref> तशबीह<ref>उपमा</ref> की
वो तो ख़ुद हू-ब-हू है ग़ज़ल

जिससे रंगीन है ज़िन्दगी
सोच का वो लहू है ग़ज़ल
 
ज़िन्दगी की कड़क धूप में
साये की आरज़ू है ग़ज़ल

नज़्र<ref>भेंट</ref>‘साग़र’करे और क्या
आपके रू-ब-रू<ref>समक्ष</ref> है ग़ज़ल

शब्दार्थ
<references/>