भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपका अनुरोध

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:01, 18 नवम्बर 2006 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि आप किसी कविता विशेष को खोज रहे हैं तो उस कविता के बारे में आप इस पन्ने पर लिख सकते हैं। कविता के बारे में जितनी सूचना आप दे सकते हैं उतनी अवश्य दें -जैसे कि कविता का शीर्षक और लेखक का नाम।

यदि आप में से किसी के पास इस पन्ने पर अनुरोधित कोई कविता है तो कृपया उसे इस पन्ने के अंत में जोड़ दें -अथवा उसे kavitakosh@gmail.com पर भेज दें। आपका यह योगदान प्रशंसनीय होगा।

इस पन्ने पर से आप कुछ भी मिटायें नहीं -आप इसमें जो जोड़ना चाहते हैं वह इस पन्ने के अंत में जोड़ दें।

||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||

निम्नलिखित कविताओं की आवश्यकता है:


"हम करें राष्ट्र आराधन" गीत को मैं नीचे लिख रहा हूँ। पाठक इस गीत के लेखक के नाम की पुष्टि करें। ---- ललित कुमार

हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन

अन्तर से मुख से कृति से
निश्छल हो निर्मल मति से
श्रद्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट्र अभिवादन

हम करें राष्ट्र अभिवादन
हम करें राष्ट्र आराधन

अपने हँसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट्र का अर्चन

हम करें राष्ट्र का अर्चन
हम करें राष्ट्र आराधन

अपने अतीत को पढ़ कर
अपना इतिहास उलट कर
अपना भवितव्य समझ कर
हम करें राष्ट्र का चिंतन

हम करें राष्ट्र का चिंतन
हम करें राष्ट्र आराधन

है याद हमें युग-युग की
जलती अनेक घटनायें
जो माँ के सेवा पथ पर
आयी बन कर विपदायें

हमनें अभिषेक किया था
जननी का अरि शोणित से
हमनें श्रृंगार किया था
माता का अरि मुंडो से

हमनें ही उसे दिया था
सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
माँ जिस पर बैठी सुख से
करती थी जग का शासन

अब काल चक्र की गति से
वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन दे कर
हम करें पुन: संस्थापन

हम करें पुन: संस्थापन
हम करें राष्ट्र आराधन

हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन