भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बदगुमाँ हम से हो गया कोई / परमानन्द शर्मा 'शरर'

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:45, 8 सितम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


बदगुमाँ हम से हो गया कोई
बहरे-ग़म में डुबो गया कोई

उनको अपना के मैं समझता था
आसरा दिल का हो गया कोई

जान तक दे राहे-उल्फ़त में
इश्क़ के दाग़ धो गया कोई

रिंद तो हश्र में थे होंठ सिये
फ़िक्रे-जन्नत में खो गया कोई

मेरे मरने के बाद मदफ़न पर
चुपके-चुपके-से रो गया कोई

शम्मे-बे-मिहर को ख़बर न हुई
जान से हाथ धो गया कोई

देख कर लाश को `शरर' की कहा
रोते-रोते है सो गया कोई