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स्नेह-निर्झर बह गया है / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:05, 28 अक्टूबर 2006 का अवतरण
लेखक: सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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स्नेह-निर्झर बह गया है!
रेत ज्यों तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सुखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-"
- जीवन दह गया है।
- जीवन दह गया है।
दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-
ठाट जीवन का वही
- जो ढह गया है।
- जो ढह गया है।
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।
बह रही है हृदय पर केवल अमा;
मै अलक्षित हूँ; यही
- कवि कह गया है।
- कवि कह गया है।